Bhajan

Bhav

मैं नहीं, मेरा नहीं,

मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

देने वाले ने दिया, वह भी दिया किस शान से ।
मेरा है यह लेने वाला, कह उठा अभिमान से
मैं, मेरा यह कहने वाला, मन किसी का है दिया ।

मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

जो मिला है वह हमेशा, पास रह सकता नहीं ।
कब बिछुड़ जाये यह कोई, राज कह सकता नहीं ।
जिन्दगानी का खिला, मधुवन किसी का है दिया ।

मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

जग की सेवा खोज अपनी, प्रीति उनसे कीजिये ।
जिन्दगी का राज है, यह जानकर जी लीजिये ।
साधना की राह पर, यह साधन किसी का है दिया ।

मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

जो भी अपने पास है, वह सब किसी का है दिया ।
मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ।

मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया ।
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया ॥

हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो

हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो
जीवन निरर्थक जाने न पाये
यह मन न जाने क्या क्या दिखाए
कुछ बन ना पाया मेरे बनाए

संसार में ही आशक्त रह कर
दिन-रात अपने ही मतलब की कहकर
सुख के लिए लाखो दुःख सहकर
ये दिन अभी तक यूहीं बिताये
हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो
जीवन निरर्थक जाने न पाये

ऐसा जगा दो,फिर सो ना जाऊं
अपने को निष्काम प्रेमी बनाऊं
मैं आप को चाहूँ और पाऊं
संसार का कुछ भय रह ना जाय
हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो
जीवन निरर्थक जाने न पाये

हे दाता हमे निरभिमानी बना दो
दारिद्र हर लो,दानी बना दो
आनंदमय विज्ञानी बना दो
मैं हूँ पथिक यह आशा लगाए
हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो
जीवन निरर्थक जाने न पाये

हे नाथ अब तो ऐसी कृपा हो
जीवन निरर्थक जाने न पाये
यह मन न जाने क्या क्या दिखाए

हरि नाम नहीं तो जीना क्या

हरि नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या ॥

काल सदा अपने रस डोले,
ना जाने कब सर चढ़ बोले।
हर का नाम जपो निसवासर,
अगले समय पर समय ही ना ॥

हरि नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या ॥

भूषन से सब अंग सजावे,
रसना पर हरि नाम ना लावे।
देह पड़ी रह जावे यही पर,
फिर कुंडल और नगीना क्या ॥

हरि नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या ॥

तीरथ है हरि नाम तुम्हारा,
फिर क्यूँ फिरता मारा मारा।
अंत समय हरि नाम ना आवे,
फिर काशी और मदीना क्या ॥

हरि नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या ॥

हरि नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या ॥

ओ३म् के हम हो चुके हैं,

ओ३म् के हम हो चुके हैं,
देव पथ के पथिक हैं हम ।।
ओम् के हम.....

जितने विकारी पाश हैं
भय मरण व्याधि त्रास हैं
सब मानसिक उपहास हैं
हम सजग हैं बस सो चुके हैं ।।
ओइम के हम.....

व्याधियां तन की मिटी,
अरु त्राण सीमाएं कटी
मन की निराशायें हटी
सम मार्ग अपना जो चुके हैं।।
ओम् के हम.....

पावन त्रिवेणी धाम है
स्वर्गीय धन ध्रुव धाम है
आध्यात्म में विश्राम है
मल ताप प्रय को धो चुके हैं।।
ओ३म् के हम .....

अब आत्म निर्मल गंग में
निस्सीम प्रेम तरंग में
उस अज अनामय अंग में
अस्तित्व अपना खो चुके हैं ।।
ओइम के हम....

देव पथ के पथिक हैं हम
वेद पथ के पथिक हैं हम
योग पथ के पथिक हैं हम

ऋषिकल्प सा दिव्य हो जीवन

ऋषिकल्प सा दिव्य हो जीवन
ऋषि के जैसा हमें बना दो।
स्नेह की वर्षा तुम वरसा दो
तुम्हारी राहों पे चल सके हम।।

प्रभु प्रदत्त शक्ति को जाने
इसे जगाकार,परहित लगाये
जीवन मेरा धरा पे सोचू
महान कार्यहित ही हुआ है।
प्रलोभनों में ना फंसने पाए
ऐसा ही दिव्य जीवन बनाए।।

रहणी वहणी करनी व कथनी
हे प्रभु मेरी दिव्य हो जाए
आत्म नियन्त्रण मन पे हो मेरा
स्वभाव मे हर क्षण रह पाए
लक्ष्य के प्रति हम जाग जाए
ऐसा ही दिव्य जीवन बनाए।।

मुश्किल परिस्थिति में भी हमारी
मनःस्थिति ना विचलित हो पाए
इच्छा हृदय में ना होने पर भी
स्वधर्म से हम भटक जाए
प्रभु की शरणागति को पाकर
ऐसा ही दिव्य जीवन बनाए।।

साधन रत हो साधक भईया

साधन रत हो साधक भईया
परमेश्वर पार करे नैया ।।
साधन रत हो ....

आस्था अचल हिमालय सी हो धृति
स्थिति नीति धरनी जैसी हो
मति निर्मल सुर सरिता सी हो
सुरभित नटवर नागरीया ।।
साधन रत हो ....

रन्तिदेव सा करूण हृदय हो
दुखः सुख में ये संत अभय हो
सत साधक की सदा विजय हो
तुम मोहन की बासुरिया ।।
साधन रत हो .....

जीवन मे सब विधि संयम हो
जगहित रत तब तन-मन धन हो
शमदम उद्यम चरणाश्रय हो
पकड़ प्रभु के ही बईया।।
साधन रत हो ....

गाओ री सखी थे मंगल गाओ री

गाओ री सखी थे मंगल गाओ री
आज म्हारे -३ गुरुदेव घर आयो जी।
आमंगल गाओ री ।।

आनन्दरी अपार घड़ी आज है आयी।
नेह प्रेमरो बरस रह्यो शुभ वेला छायी।
ओ म्हारे हिवड़े से सम्राट आयो ।।

श्रद्धा सुमनरी थाल सजाओ रोली चन्दन लाओ।
चरणन में थे पुष्प चढ़ाओ भाल तिलक लगाओ।
ओ म्हारे जीवन धन आयो जी..।।

रंगोरी बौछार करो आसन बिछाओ।
प्रेमाश्रु से सद्गुरु रा चरण पखारो।
ओ म्हारे प्रभु घर आयो जी--।।

शुद्ध समर्पण भावो से भोग लगाओ।
शुभ संकल्प पुरुषार्थ री भेंट चढ़ाओ।
ओ थे तो दिव्य लोक से आयो जी..।।

गुरुचरणा में बैठके जीवन धन्य बनाओ।
गुरुभक्ति में डूब के सारे आनन्द पाओ।
प्रभुरा रूप धरके आयो जी-- ।।

भगवान मेरा जीवन, संसार के लिए हो

भगवान मेरा जीवन, संसार के लिए हो हो
यह जिंदगी हो केवल, उपकार के लिए हो ।

हममें विवेक जागे, हम धर्म को न भूले
चाहे हमारी गर्दन, तलवार के लिए हो ।।1।।

सुंदर स्वभाव मेरा , शत्रु का मन रिझा ले
वह देखते ही कहदे , तुम प्यार के लिए हो ।।2।।

मन बुद्धि और तन से , सब विश्व का भला हो
चाहे हमारी नैया , मझधार के लिए हो।।3।।