परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के भीतर जन्म से ही संन्यास की एक सहज मांग थी जो समय के साथ तीव्र से तीव्रतम होती चली गई और अंततः वैदिक शिक्षा एवं संस्कृति में निष्णात होने के बाद वर्ष 1995 रामनवमी के दिन महाराज श्री ने संन्यास ले लिया । परम पूज्य महाराज श्री के तप, त्याग सेवा, समर्पण और पुरुषार्थ के 20 वर्षों के बाद उन्होंने अपने सदृश सन्यासियों को सन्यास के मार्ग पर अग्रसर किया। ऐसे भाई-बहन जिन्होंने स्वयं को महाराज श्री के संकल्पों के साथ एक एकाकार करते हुए, निष्ठा के साथ प्रबल पुरुषार्थ करते हुए जगत की सेवा में अपने जीवन को आहूत कर दिया।
"जग की सेवा खोज अपनी प्रीति उससे कीजिए जिंदगी का राज है यह जानकर जी लीजिए" इस भावना के साथ अपने विवेक और वैराग्य को बढ़ा रहे हैं और गुरु प्रदत्त अपने-अपने सेवा क्षेत्र के दायित्वों का पूरी प्रामाणिकता के साथ निर्वहन कर रहे हैं।
देश और विदेश भर में लाखों किलोमीटर की यात्रा करने के बाद महाराज श्री ने अनुभव किया कि समाज, समर्थ एवं आध्यात्मिक नेतृत्व विहीन होता जा रहा है और चारों ओर चाहे वह सामाजिक क्षेत्र हो, आध्यात्मिक, वैचारिक, सांस्कृतिक या फिर राजनीतिक क्षेत्र हो उनमें एक निर्वात वैक्यूम सा बनता जा रहा है तो परम पूज्य महाराज श्री ने देश को समर्थ, संस्कारवान, आध्यात्मिक नेतृत्व के रूप में अपने ही आत्मस्वरूप संन्यासी, सन्न्यासिनी के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। 2018 में एक साथ 100 संन्यासी दीक्षित कर समाज को समर्पित करने के बाद एक बार पुनः 2023 रामनवमी के दिन 100 से अधिक समर्थ, विद्वान विदुषी सन्यासी सन्यासिनी भाई-बहन इस संन्यास यज्ञ में में स्वयं को आहूत कर रहे हैं। यह पतंजलि योगपीठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए एक अद्भुत गौरवमयी पल है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था यदि मुझे मेरे जैसे 100 सन्यासी मिल जाए तो मैं पूरे विश्व में सेवा के नए कीर्तिमान खड़ा कर सकता हूं एवं पूरे विश्व को आध्यात्मिकता से भर सकता हूं, आज उसी संकल्प की पूर्ति हेतु परम पूज्य महाराज श्री निरंतर प्रयत्नशील ही नहीं अपितु गतिशील भी हैं। पूर्व में भी सन्यासी वैदिक ज्ञान परंपरा, आर्ष ज्ञान परंपरा के संग दीक्षित होते हुए संन्यस्त होते थे तो भारत गतिशील, प्रगतिशील राष्ट्र था कालांतर में वैदिक गुरुकुलीय परंपरा में शिथिलता आने के कारण संन्यास परंपरा में भी सन्यस्त हो रहे सन्यासी के समग्र व्यक्तित्व के विकास में बाधा उत्पन्न हुई है। आज वर्तमान में पूज्य महाराज श्री के माध्यम से स्वस्थ संन्यास लेने की परंपरा को जीवित ही नहीं अपितु परिणाम स्वरुप अपने जैसे संस्कारवान, समर्थ, आध्यात्मिक सन्यासी सन्यासियों की लंबी श्रृंखला भी तैयार कर ली है जो निष्काम भाव से पुरुषार्थ करते हुए अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं और भारत में पुनः वैदिक सत्य सनातन धर्म की स्थापना करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है
Vaidic Gurukulam Patanjali Sanyas Ashram Patanjali Yogpeeth Haridwar 249405 Uttarakhand