परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज के भीतर जन्म से ही संन्यास की एक सहज मांग थी जो समय के साथ तीव्र से तीव्रतम होती चली गई और अंततः वैदिक शिक्षा एवं संस्कृति में निष्णात होने के बाद वर्ष 1995 रामनवमी के दिन महाराज श्री ने संन्यास ले लिया । परम पूज्य महाराज श्री के तप, त्याग सेवा, समर्पण और पुरुषार्थ के 20 वर्षों के बाद उन्होंने अपने सदृश सन्यासियों को सन्यास के मार्ग पर अग्रसर किया। ऐसे भाई-बहन जिन्होंने स्वयं को महाराज श्री के संकल्पों के साथ एक एकाकार करते हुए, निष्ठा के साथ प्रबल पुरुषार्थ करते हुए जगत की सेवा में अपने जीवन को आहूत कर दिया।
"जग की सेवा खोज अपनी प्रीति उससे कीजिए जिंदगी का राज है यह जानकर जी लीजिए" इस भावना के साथ अपने विवेक और वैराग्य को बढ़ा रहे हैं और गुरु प्रदत्त अपने-अपने सेवा क्षेत्र के दायित्वों का पूरी प्रामाणिकता के साथ निर्वहन कर रहे हैं।
Read More